इधर उधर की
पलकें जो मुंद
जाती है तो
हो जाती है
जिंदगानी कैद ,
पलकों का हिलना है आगाज़ किसी कहानी का।
पलके जो उठ जाएँ तो
पलके जो उठ जाएँ तो
फलक भी हो
जाता है बेचैन,
लरजती पलकों पे बोझ
है
कई जिंदगानी का।
पुतलियों में झिपी है लहू कि रवानी ,
नैनों की झील में डूबी है जिंदगानी।
जमाने से लड़ता बगावत भी करता
गर मेरे सितारे
गर्दिश में न
होते ,
दिल पे क्या
गुजरी है तुमको
सुनाता
गर जमाने कि बंदिश
में न होते।
रफ्ता-रफ्ता दिन कटते
थे
वो चैन उड़ा
कर चले
गए।
पहले ही ग़म
कम ना थे
वो और बढ़ा
कर चले गए।
अंगड़ाई ले के उसने पुकारा जो मेरा नाम ,
ज़ेहन से उठी हूंक और मैं हो गया बेनाम।
ज़ेहन से उठी हूंक और मैं हो गया बेनाम।
जिन्हें सौंप दी
थी सारी जिंदगी
वो ही पड़ गए है मेरी
जान के पीछे।मंदिर में बैठ के पिया,
गहरे पानी में पैठ के पिया ,
मज़ा पीने का लेकिन ,
तेरे हाथों से ही है साक़िया।
या खुदा बता दे इस दीवाने को,
ये दुनिया बुरा क्यूँ मानती है पैमाने को।
ऐ साकी छलकने दे जाम आज की रात,
आज मेरे दिलनवाज़ की शादी है।
पिलाये जा बिन रुके आज़ की रात,
अभी तो हलक में जान बाकी है।
दीवानगी का आलम दुनियाँ को नहीं भाता है,
क्योंकि
हर साख़ पे दीवाने को ऊल्लू ही नज़र आता है।
ऊँगली पकड़ के जिनको चलना सिखाया था
वो कह रहे हैं तुमको आता ही क्या है।
जिन्हे जिंदगी का सलीक़ा सिखाया था
वो कह रहे हैं तुमको आता ही क्या है।
जिनसे है मुलाक़ात बस एक रात की
कहते हैं रास्ते नहीं कटेंगे मेरे बग़ैर।
जिसको सहेज कर नियामत से रखा था
जब देखा तो निकला वो तन्हाईओं का ढ़ेर।
दीवानगी में क़दमों में सर भी रख दिया ,
वो मुस्कुराये और.… ठोकर लगा के चल दिए।
नज़र में शोखियां हों तो फ़रिश्ते भी मचल जाए,
तेरे एक इशारे पे खुदा की भी नीयत बदल जाए।
मुद्द्त के बाद दिया जला है- और हुआ है जहां रौशन ,
अक्सर आते है वो ऐसे में ही तूफाँ बनकर।
रफ़ता रफ़ता दिन कटते थे, चैन उड़ा के चले गए,
पहले ही ग़म कम ना थे, वो और बढ़ा के चले गए।
लाख़ की चूड़ियाँ खनकेंगी तो मन मचलेगा ही ,
ऐसे में कहते हो कि आज़ नहीं और कभी।
ख्वाहिशों को अब ज़ुबान मिल ही गयी,
दिल मेरा कहता है और अभी और अभी।
जमीं का ज़र्रा ज़र्रा उनके हुस्न का क़ायल है,
हवा का इक इक झोंका अंगड़ाईयों से घायल है।
निशा में तेरे यौवन की छटा देदीप्यमान है,
खूबसूरती के धरातल पे तू आसमान है।
उसने जी भर के कोसा और ताने दिए,
अब तो हद हो गयी बेवफ़ा कह दिया।
लाश भी कब्र में अब तो चुप ना रही,
और ये कह पड़ी - बेवफ़ा मैं नहीं ,
बेवफ़ा मैं नहीं।
जुल्फें तूने लहराकर दिन में ही रात कर दी ,
बरसों से जो ख्वाहिश वो बात आज कर दी।
चाँद पे तेरे लिए एक घर बनवाऊंगा
और
मेरी हर जिद फिर वही पे मनवाऊँगा।
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