Sunday, 22 December 2013

लाल रंग

और वो लगातार तीसरे साल फ़ेल हो गई।उसे ऐसा लगा जैसे 12वी क्लास एक लड़का है और मुह चिढाकर बोल रहा है "हम तुमसे जुदा हो के, मर जायेगे रो रो के "। उसके पिता तो क्या सब सारे घर वाले परेशान। वो समझदार थी और घर में सब लोग उसके व्यवहार से ख़ुश रहते थे। बस उसके फेल होने  से सब को दुःख होता था। उसके पिता को उसकी शादी की चिंता उसके फेल होने से ज्यादा सताती थी। आज कल बी से कम पढ़ी लड़की की शादी करना कितना मुश्किल होता है। दहेज़ कि मांग ज्यादा तो होती ही है , अच्छा लड़का मिलना भी मुश्किल होता है।पिता ज्यादा दहेज़ भी नहीं दे सकते थे और लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी थी नहीं ।  परेशान से वो दहेज़ प्रथा को कोसते रहते थे। काफी मेहनत मशक्कत के बाद आखिरकार एक लड़का मिल ही गया जिसके घर वाले १२ वीं फ़ेल लड़की से शादी को तैयार हो गए। अपने प्रयास से पिता का सीना फूले नहीं समा रहा था।  आखिर वो दिन आ गया जब बला जैसी लगने वाली लड़की को विदा करने का वक्त आ गया। विदाई की घडी में बाप के आखों से आंसू की गंगा जमुना बह रही थी।

बेटी को विदा कर बाप ने ठंडी सांस ली और बेटी भी बहुत खुश कि चलो अब पढाई और परीक्षा से पीछा छूटा। लेकिन उसकी ख़ुशी ज्यादा देर तक उसका दामन पकड़ सकी। उसके पति और उसके ससुराल में सबने उससे साफ़ साफ़ कह दिया कि बहु तो बेटी कि तरह है और उसे वो ग्रेजुएट तो बना के ही दम लेंगे।  सबके प्यार और दुलार वाली जिद ने उसे आगे पढ़ने पर मजबूर कर दिया। पढाई के नाम से ही उसे सिहरन उठने लगती थी और मार्कशीट पर लाल रंग से " फेल्ड " लिखा शब्द उसके आँखों के सामने घूमने लगता था। बार बार उसे "प्रेम नगर" फ़िल्म का गाना याद आता था " ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा"


बड़ी मुश्किल से उसने परीक्षा दिया और बेमन से परिणाम का इन्तजार करने लगी।  चमत्कार हो गया, उसका रोल नंबर पास वाली लिस्ट में छपा हुआ दिख गया। किस श्रेणी में , कितने मार्क्स आये उससे उसे कोई लेना देना नहीं था। उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।  आखिर कई साल की मेहनत और मन्नत के बाद वो पास जो हो गयी थी। बड़े खुशनुमे अंदाज के साथ अपनी मार्कशीट लेने खुद स्कूल गयी।  ये क्या , मार्कशीट में फिर से "फेल्ड " लिखा था। उसे लगा जैसे लाल रंग उसे कह रहा हो " जन्म जन्म का साथ है हमारा तुम्हारा, हमारा तुम्हारा। " और उसने मार्कशीट फाड़ कर फेंक दिया।

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