Sunday, 3 August 2014

चूल्हा


तुम्हे जलाये रखने के लिए-
रामू के बापू की हड्डियां जलीं है.
सुलगती लकडियो के उठते धुएं से- 
रामू के माँ की पुतलिया जलीं है.
घुटन में बैठी , दमे से खांसती -
फेफड़े की इक इक
पसलिया हिली है.
जब भी तुम ना जल सके तो-
घर भर की

अतड़िया जलीं है..

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