मैं ढूंढ रहा
हूँ मानव
दर दर भटका
हूँ,
अनवरत प्रयास की प्रेरणा
मैंने अमानुष से
ली.
कई मानव मिले,
लेकिन,
संपूर्ण मानवता को समर्पित,
मानव की तलाश
जारी है.
जो कुछ अर्थो
मे मानवता की
सीमाओ का सामीप्य
लिए है,
वो अमनुषो के बीच,
अपने आप को
अकेला ढ़ोने में
लगे है,
सब तरफ
अराजकता की मूर्तियों
, प्रति-मूर्तियों और पुजारियों
का मेला लगा
है,
बेहतर है की,
मानवता का अर्थ,
अभिप्राय , परिभाषा बदल दो.
No comments:
Post a Comment