Saturday 7 December 2013

घाटी



ये हसीन वादियाँ जिनमें गुन्जती थीं प्यार की  बोली
सुनाई देती है अब चीख- पुकार, आवाज़े गोली।
लाल-लाल फूलो की वादियाँ लाल रहे फिर भी लाल हो गईं 
दरख़्त तो दरख़्त पत्ते तक कटीले हो गए,
इनको सहलाने से अब हाथ ही छिलेंगे।
डालियों से बारूद की बू आती है,
पूरी की पूरी घाटी मौत का जाल हो गई।
अबके पतझड़ में जड़ो तक पानी पहुचाना है,
क्योंकि,
फिर से एक बार कोपलें ज़रूर फूटेंगी,
फिर से एक बार घाटी में सदाए गूंजेंगी।

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